Thursday, May 26, 2011

कब्र


संजोय रखे है गुलदानो  में गुल -ए- ख़ास उसने
कोई पहचान शायद बनाई है मेरे लिए
अपनों ने तो भुला दिया दफ़न से पहले
किसी मेहेरबा ने कब्र सजाई है मेरे लिए 

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