Thursday, May 26, 2011

ख्यालो की कब्र गाह


कई दिनों बाद
आज फिर ये ख्याल  आया ,
एक अंत हीन
सफ़र को दिल फिर क्यों   चाहा
एक ऐसी यात्रा पर
आपनी व्यथाओ  पर अंकुश
 क्यों नहीं लगा पाता
अपनी चीत्कार को
क्यों नहीं सह पाता
कई बार समझाया,
अपनी खुद की
व्यथा पर ,
 अपनी ही नियत पर
मैंने कितने फैसले लिए
फिर भी
भावशून्य
आशंकित, मन
 मोह की जंजीर,
 थामे  रुक - रुक जाता !
बीते समय को बंद मुठी में किये
आज खुद से नाराज़, हालात से खफा
ख्यालो की कब्र गाह पर
आज फिर सो - सो जाता !

No comments:

Post a Comment