Thursday, May 26, 2011

विराट या लघु


होली के इस पावन अवसर पर मित्रो के बीच हास्य - परिहास्य चल रहा था ! बातो - बातो में स्वामी राम तीर्थ जी का प्रसंग चल पड़ा ! अतीत की परते उतरने लगी --प्रसंगों का दौर उचतम बिंदु पर --- बात उस समय की (कथ्य) रूप में  जब श्री राम तीर्थ जी जापान गये हुए थे ! वहा जापानी महल में लगे हुए चिनार के पेड़ का लघु रूप उन्हें आकर्षित कर रहा था !वो देख कर आश्चर्य चकित थे की ये चिनार का पेड़ इतना छोटा केसे?
जिज्ञासा वश उन्होंने उसके बारे में जानकारी चाही ? पास खड़े माली ने सरल भाव से स्वामी जी को बताया की हम लोग इनकी जड़े ही नहीं बढने देते है जेसे -जेसे ये गहराई की ओर अग्रसर होते है , हम इन्हे काट देते है !क्यों की जिस पेड़ की जड़ जितनी गहराई में होती है , वो उतना ही उंचा होता है !
वास्तव में गंभीर चिंतन ये है की बोने पेड़ो से हमारे विकास का अद्भुत नाता है ! हमारे विचार पेड़ की जड़ के समान है अगर  ये गहराई तक नहीं पहुचे तो हमारा व्यक्तित्व का पेड बौना रह जाएगा ओर तब हमारा विकास कतई संभव नहीं !विचारणीय ये है की हम अपना कद किस रूप में देखना चाहते है विराट या लघु !

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