Thursday, May 26, 2011

चिंतन


तो उलझा रहा उलझनों की तराह -----------
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आज का चिंतन --------
************************मित्रो देश में एक आम आदमी के जीवन की त्रासदी की एक बानगी देखिये -----  
एक राजगीर पुरे जीवन  दुसरो के मकानों का निर्माण करता है ----पुरे जीवन लगन से मकानों का सुंदर निर्माण उसकी योगिता थी ----जीवन के अंतिम पडाव में काफी थकान के अनुभव के कारण उसने एक दिन  अपने मालिक से अपने काम के प्रति रेतायेर्मेंट  के बारे में अनुरोध किया ----
मालिक ने उसके अच्छे कामो और सद चारित्र के कारण कहा की ---कोई बात नहीं बस मेरा अंतिम काम एक मकान और बना दो फिर तुम रितायेर्मेंट के लो ---राजगीर ने कहा चलो ये ही सही ----
मकान निर्माण में लग गया ---कुछ समय बाद जब मकान बन गया तो वो मालिक के पास गया और कहा ---सरकार मकान तेयार हो गया है ---आप देख ले ----मालिक उस राजगीर के साथ मकान पर गया ---देखा मकान तो बन गया था किन्तु वो उस राजगीर की कारीगरी के अनुसार निर्मित नहीं था ---
उसने राजगीर से कहा ---ये मकान मेने तुम्हारे लिए बनवाया था ---ये तुम्हारा है ----राजगीर स्तब्ब्त ---
सार -----मन से लगन का नाता होता है ----क्या काम का सही मूल्यांकन हो सका ---?
आप का विवेक क्या कहता   है ----
-----------------------------------------------------------------आपका रविन्द्र 

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