Thursday, May 26, 2011

विचार


प्रिय मित्रो ,
आज किसी विचार धारा , महा पुरुषो या  किसी वाद पर चर्चा ना करके अपने अतीत की कुछ घटना क्रम के साथ टकराव को आपके साथ साझा करने का मन है ---- आज से लग -भग २०-२५ वर्ष पूर्व की घटना याद आती है  -------
नया मन , नवीन चेतना ,उत्साह से भरा में समग्र परिवर्तन की बात करा करता था !पत्रकारिता विभाग में अध्यन के दोरान एक दिन विख्यात पत्रकार वा विद्वान प्रवक्ता हमारे  वन्दनीय गुरु जी हम सभी को "लेखन में झुकाव" के विषय के संदर्भ में समझा रहे थे ! हम सभी मन्त्र -मुग्ध हो कर नया ज्ञान प्राप्त कर रहे थे ! उस समय उक्त विषय के बारे में गंभीर चर्चाए एवं मंथन कई दिनों तक चला ----
हम सभी मित्र अपने लेखन में रत हो गये थे किन्तु शेली वही  यंत्र वत वैज्ञानिक लेखन विधा ! रुद यार्ड क्रिप्लिंग का सिद्धांत और वही पुरातन लेखन शेली -----
आज जब आतीत को झाँक कर अपने उन आलेखों को देखता हू तो पाता हू की उस समय लेखन में ठराव की कमी थी ! उस समय लेख किताबी नियमो के आधार पर लिखे जाते थे ! जहा 5-w, 1-h के नियम , 3-c के नियमो पर पूरा ध्यान दिया जाता था !किन्तु आज जब उस समय के लेखो की विवेचना करने बेठा तो महसूस हुआ की उस समय ससक्त लेख की रचना तो होती थी लेकिन उसमे आत्मा (रूह ) नहीं थी !
उम्र के इस पडाव पर अनुभव हुआ की हम चाहे कितना भी कोशल अपनी लेखो  में लगा ले किन्तु जब तक आत्मा उसमे निहित नहीं होगी , आलेख  गतिमान तो रहेगा किन्तु एक रिक्तता लिए हुए -----
गंभीर  चिन्तन के दोरान शब्द विन्यास जानदार होना चाहिए ---लेखन में झुकाव आज कुछ -कुछ समझ में आ रहा है !हिंदी के विख्यात लेखक अग्ये जी ने लिखा है की ---
"तुम्हारी आँखों में मेने
अपने लिए
अनेक अर्थ ढूंढे थे
मुझे अर्थ का मिल जाना ही
तुम्हारे लिए अनर्थ हो गया !"
आपकी एक लाइन अर्थ का अनर्थ कर सकती है ! ख़ास तोर पर आलेख अगर किसी विचार धारा , किसी वाद या कोमी विषयों के संदर्भ में !आज आधुनिक पत्रकारिता में शुद्ध लेखन की कमी महसूस हो रही है !अधिकतर लेख जुकाव लिए हुए है !ये क्यों --? क्या कलम का सिपाही नेतिक मूल्यों से भटक गया है ---? क्या चेतना गिरवी रख दी है ---? या फिर तथा कत्तिथ आकाओं का प्रभाव स्राज्नात्मक्ता को दिशा नहीं दे रहा है ---?
चर्चाओं के दोरान आज आकामक शब्दों का निर्माण हो रहा है क्या हम मित्रो में प्रतिस्पर्धा की भावना इतनी बलवती हो गयी है महज चंद वाह -वाही के लिए अपनी कलम को झुका दे रहे है !अपनी नई पीढ़ी से अनुरोध करता हू की या तो वो इस दिशा में आये ना , यदि आये तो लेखन के साथ पूरा न्याय करे ! थोती मान्यताओं से समाज नहीं बनता !इक सलाम अपने उन गुरु जी की प्रति जिन्होंने सुंदर अभिव्यक्ति सम्प्रेषण को दिशा देने का विचार समझाया ----अफ़सोस अपनी सोंच को उस समय समझ नहीं सका !पर आप के लिए सभी दरवाजे खुले है !चयन आप को करना है ! रास्ता सामने है ! आपको चलना है ! मेरी शुभ कामनाये आप के साथ हमेशा रहेंगी !
आप का अपना ही -----रविन्द्र

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