Thursday, May 26, 2011

चिंतन


तो उलझा रहा उलझनों की तराह -----------
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आज का चिंतन --------
************************आत्मा का शरीर में रहना ही जीवन है और आत्मा का शरीर से अलग होना ही म्रत्यु है-----आत्मा का रूप अति सूक्षम होता है ---वो अविनाशी है ----आत्मा का निवास भ्रगुति के बीच होता है ---माया में फंसकर जीव अपने वास्तविक मूल स्वरुप को भूल कर काम , क्रोध और मोह के दलदल में फंस जाता है लेकिन अपने समस्त मैल एवं पापो का परिमार्जन कर मूल स्वरुप में रहना ही योग है ----योग संसार त्याग नहीं वरन संसार के प्रति आसक्ति का त्याग होता है -----
------------मित्रो हम इस कथ्य के कितने करीब अपने को पाते है क्या कभी आत्म चिंतन इस दिशा में किया है यदि नहीं तो आज से आरम्भ करे -----आपको शान्ति का आभास होगा ----आज इतना ही ----
--------------------------------------------------------------सम्मान सहित आप का रविन्द्र 

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