Thursday, May 26, 2011

"वर्तमान युग में गाँधी विचारों की उपयोगिता "


"वर्तमान युग में गाँधी विचारों की उपयोगिता "विषय पर आप सबकी राय से एक परिचर्चा प्रारम्भ की गयी ! आप सभी चिन्तनशील व्यक्तियों ने अपने विचार व्यक्त किये !किन्तु मुझे अफ़सोस हुआ की हम सभी उस चर्चा के दोरान मूल विषय से भटक से गये थे वर्तमान युग में गाँधी विचारों की उपयोगिता के बजाए हम लोग मोहन दास करम चंद गाँधी पर अपना आक्रोश व्यक्त कर रहे थे !विचारणीय मोहन दास --नहीं गाँधी विचार धारा थी !
आज मुझे कहते हुए अफ़सोस हो रहा है की वो लोग जो मानसिक चेतना की पुकार ना सुनकर गाँधी जी को अपशब्द कहने में भी संकोच नहीं कर रहे थे वो क्या साबित करना चाहते है ? में व्यक्ति विशेष की बात ना कर उनकी नीतियों की चर्चा चाहता था ! खेर ----लोकतंत्र का ये नंगा सत्य उजागर हुआ -----
गाँधी जी के विचार और शिक्षाओं को प्रायः गांधीवाद के नाम से जाना जाता है हालाकि गाँधी जी ने स्वम कहा था की मेने कोई वाद (ism) या  सम्प्रदाय नहीं चलाया ! उनका सम्पूर्ण दर्शन सत्य और अहिंसा में निहित है !गाँधी जी एक विचारक थे भागवत गीता ,पंतजलि के योग सूत्र , रामायेन, महाभारत ,बुद्ध, एवं जैन धर्मो का वास्तव में  ग्रंथो के अध्यन ने उनपर अपना प्रभाव डाला था !(सरमन आन थि माउन्ट ) ने उनपर विशेष छाप छोड़ी थी " बदी को नेकी से जीतो , अपने सत्रुओ से प्यार करो , जो तुम्हे गाली दे उसे आशीर्वाद दो , तुम भलाई करो ---आदि -----क्या ये बाते वर्तमान  या पुरातन  परिवेश में गलत है ?
यहा आज प्रासंगिक होगा की कुछ बिन्दुओ पर प्रकाश डाला जाए -------
व्यवहारिक आदर्श वाद -----क्या आज मुख में राम बगल में छुरी देखने में नहीं मिल रही है !पर गांधी व्यवहारिक आदर्श वाद में विश्वास रखते थे ! जो वर्तमान संरचना में उचित है !
सत्या गृह का सिद्धांत ---सत्या गृह का अर्थ है बिना किसी दुर्भावनाओ के कस्ट उठाना और उसके दुवारा अपने विरोधी  को अपनी बात की सत्यता का विस्वास दिलाना ! क्या ये आज प्रासंगिक नहीं है ?---
अहिंसा पर बल , साध्य और साधन की पवित्रता की बात क्या आज उचित नहीं है ? विकेन्द्रित आर्थिक व्यवस्था के बारे में चिंतन क्या आज तर्क सांगत नहीं है ?--- प्रन्यास या ट्रस्टी शिप का सिद्धांत क्या वर्तमान परिवेश में विचारणीय नहीं है ?----वर्ग व्यवस्था में विस्वास , छुआ -छुट का विरोध , सामाजिक कुरीतियों का विरोध , सामाजिक एकता में विस्वास , शिक्षा में सुधार , अंग्रीजी माध्यम का विरोध क्या आज अर्थ हीन है ?
मेरे अनुसार गाँधी  दर्शन आज के परीवश में पूरी तरह प्रासंगिक है और आवश्यक भी -------

No comments:

Post a Comment