Thursday, May 26, 2011

दहेज़


उन दिनों काफी समय मिल जाता था ! नया उत्साह , नई उमंग आंदोलित करती क्रांतिकारी विचारों की तरंगे प्रवाहित हुआ करती थी ! स्वयं को नहीं समाज की दिशाय बदलने के विचारों से भावनाय ओत - पोत रहती थी ! परिवार में साहित्यक वातावरण था जिस कारण लगभग हर दिन व्यचारिक मंत्र्नाय , हुआ करती थी ! मुझे याद है वो पल जब पिता जी अपने मित्रो के साथ मार्क्स , मनु और मोहम्द विषय पर चर्चा कर रहे थे -----और उसमे लीन थे तभी अचानक पिता जी के एक पुराने मित्र आए वो काफी परेशान लग रहे थे !गोष्ठी समाप्त -----पिता जी चितित तुरंत अपने मित्र के साथ बाहर चले गये ! काफी समय बाद वापस आये तो ज्ञात हुआ की उनके मित्र की बेटी दहेज के कारण जला दी गयी है और उसकी मृतु हो गयी है ! उस समय सामान्य घटना महसूस हुई आज प्रासंगिक लगाता है उस  घटना के बारे में ----मंथन -----विडंबना आज ये घटना समाज में अक्सर देखने को मिल रही है !हम आज पाप और पुड्य विषयों पर चर्चा करते है पर सिर्फ चर्चा ----- परिणाम कुछ नहीं ----? ऐसे माँ - बाप जो बहुत मुश्किल से उधार के पैसे से अपनी बेटियों की शादी करवाते है , उन गरीबो पर दबाव डालना और उन्हें कस्ट देना क्या एक बड़ा पाप नहीं --? जब आप लोगो के साथ एक बंद कमरे में रौशनी का इन्तजार करते है तो ये इन्तजार मत करे की कोई आएगा और दिया जलाएगा ! सबसे पहले आप रौशनी करने का प्रयास करे !---इमानदार समाज में इमानदार और परिशुद  बन कर रहेना बहुत मुश्किल है जो लोग दहेज़ लेने में रत है ओन्हे  ये पता होना चाहिये वो एक आधार हीन समाज की संरचना में अपना योगदान दे रहे है !आप क्यों इतना पाप संचित कर रहे है ? क्या आप जैसा मूर्ख कोई और है !
---------रविन्द्र

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