हम तो पत्थर है ---
एक शिला खंड सदियों से
पड़े है ---
अपनी जगह
कायम ---सनातन ---
तुम लोग तो ---
हवाओं में भी
थिरकन पैदा
करते है -----पर मै--
अभिशापित ---
आज भी अहिल्या
की उपमा में निहित हू---
एक बार सिर्फ एक बार
मेरा दरकना
किसी मोम की पिघलन
मत समझना --- क्यों की ---
मोम को पिघलाने के किये
आंच की जरुरत पड़ती है ----?
औरमुझमे गर्मी नहीं ----
हवाओं -ओ-मिटटी की
जरुरत पड़ती है ----
मेरे निर्माण में ----
सदिया देखी है --इन
फिजाओं ने तुम कहते हो
पत्थर जो था वो मोम बन गया --
कभी अपने को
टटोला है
टटोलो गे तो देखो गे --
ये --ख्वाहिश है
मेरे
समर्पण , निष्ठा और संकल्प की
मै कोई मिथ्या नहीं
हकीकत हू शायद
इसी किये आज भी
लोग कहते है
"पत्थर जो था मोम बना वो
मै भी विनम्र होने का
स्वांग करता हू ---
जी है ---ये सच है ---
अभी आज फिर यहाँ
मै पत्थर से मोम बन गया ----!
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